Israel Iran Tension: 76 साल पहले ईरान-इजरायल में था गहरा याराना फिर कैसे बन गए कट्टर दुश्मन?
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Israel Iran Tension Update: क्या ईरान और इजरायल दोस्त हो सकते हैं… अगर ये सवाल आपसे पूछा जाए तो आपका जवाब होगा… ये कैसा बेकार सवाल है. दो कट्टर दुश्मन भला दोस्त कैसे हो सकते हैं. पर आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज से करीब 76 साल पहले ईरान-इजरायल में गहरा याराना था. लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि इन दोनों का दोस्ताना, आज कट्टर दुश्मनी में बदल गया है. ईरान और इजरायल की दोस्ती का चैप्टर क्यों खत्म हुआ. और अब दोनों एक-दूसरे को बर्बाद करने वाले हमले क्यों कर रहे हैं.. इसकी कहानी लंबी है.
मिडल ईस्ट में भड़की इंतकाम की आग
मिडल ईस्ट में भड़की इंतकाम के आग की तपिश पूरी दुनिया महसूस कर रही है. मौजूदा हालात में ईरान और इजरायल, दोनों ही बारूद के ढेर पर बैठे हैं. हर पल आशंका ये आशंका गहराती जा रही है कि कहीं दोनों मुल्कों की तनातनी विश्व युद्ध में न बदल जाए. जंग के मुहाने पर खड़े ईरान और इजरायल आज एक दूसरे का वजूद मिटाने पर आमादा है. लेकिन कभी इन दोनों मुल्कों में गहरी दोस्ती थी.. करीबी रिश्ते थे. और दोनों एक दूसरे पर जान छिड़कते थे. लेकिन ईरान के खलीफा बनने की चाहत दोस्ती के रास्ते में रोड़ा बन गई और ये दोस्ती दुश्मनी में तब्दील हो गई.
दमदार दोस्ती से कट्टर दुश्मनी तक
दमदार दोस्ती से कट्टर दुश्मनी तक की पूरी कहानी जानने के लिए आपको फ्लैशबैक में ले चलते हैं. ईरान और इजरायल की दोस्ती की शुरुआत करीब 76 साल पहले यानी 1948 में हुई. तब मिडल ईस्ट में फिलिस्तीन की जगह, इजरायल नाम का एक नया यहूदी देश वजूद में आया. जिसे ज़्यादातर मुस्लिम देशों ने मान्यता देने से इनकार कर दिया. जब मध्य पूर्व के तमाम देश इजरायल से दूरी बना रहे थे. उसके वजूद को मानने से इनकार कर रहे थे. तब ईरान, तुर्किए के बाद दूसरा ऐसा मुस्लिम राष्ट्र था, जिसने 1948 में ही इजरायल को देश के तौर पर स्वीकार कर लिया. उसे मान्यता भी दे दी. उस वक्त ईरान में पहेलवी राजवंश का शासन था.
तब सब कुछ पर्दे के पीछे होता था
दिलचस्प बात ये है कि आज जिस फिलिस्तीन के साथ ईरान खड़ा है. जिसके लिए इजरायल को मिटाने की बात करता है. उसी फिलिस्तान ने, ईरान से इजरायल को दी गई मान्यता को नकबा यानी तबाही बताया था. कहा जाता है कि ईरान ने कभी खुलकर इजरायल से दोस्ती का इजहार नहीं किया था, तब सब कुछ पर्दे के पीछे होता था. ईरान और इजरायल की दोस्ती की कड़ी अमेरिका था. क्योंकि ईरान के शाह अमेरिका का समर्थन करते थे और इजरायल भी अमेरिका का समर्थक था. माना जाता है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के करीब होने की वजह से ईरान ने इजरायल को मान्यता दी.
1953 में तख्तापलट..
1953 में तख्तापलट के बाद शाह ने सत्ता हासिल की, तो वो अमेरिका के सबसे बड़े सहयोगी और इजरायल के मित्र बन गए. उनकी सत्ता में वापसी से ईरान और इजरायल की दोस्ती की गाड़ी सरपट भागने लगी. ईरान इजरायल की दोस्ती का दूसरा और सबसे मजबूत दौर 1968 में आया. 1948 में वजूद में आने के बाद से ही इजरायल, दुनिया भर के देशों से संबंध स्थापित करने की कोशिशों में जुटा था. इसी दौरान उसने ईरान की राजधानी तेहरान में एक दूतावास की स्थापना की. दोनों देशों ने एक दूसरे के यहां अपने राजदूत नियुक्त किए. इससे आपसी रिश्ते प्रगाढ़ हुए तो व्यापारिक संबंधों को भी मजबूती मिली. जल्द ही ईरान, इजरायल को तेल आपूर्ति करने वाला प्रमुख देश बन गया.
रिश्ते इतने अच्छे हो गए कि..
दोनों देशों ने 1968 में एक पाइपलाइन शुरु की जिसका उद्देश्य ईरान के तेल को इजरायल और फिर यूरोप भेजना था. रिश्ते इतने अच्छे हो गए कि दोनों देशों ने एक दूसरे से अपने तकनीक तक शेयर किए. उधर, इजरायल… अमेरिका और पश्चिमी देशों से ईरानी शाह की मजबूत दोस्ती का असर ईरान में हर तरफ दिख रहा था. शाह मोहम्मद रज़ा पहेलवी की अगुवाई में ईरान तेजी से पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग रहा था. लिबरल होने का दम भरने वाले शाह, ईरान में हिजाब जैसी प्रथा के सख़्त खिलाफ थे. वहां महिलाओं को पूरी आजादी दी गई. तेजी से बदलते ईरान में आधुनिक जीवनशैली ने अहम जगह बना ली थी.
60 के दशक में ईरान और इजरायल
60 के दशक में ईरान और इजरायल की दोस्ती नई ऊंचाईयों को छू रही थी. शाह की सत्ता के दौरान ईरान, इजरायल का मेन तेल सप्लायर बन चुका था. दोनों देशों के बीच करीबी रिश्ते सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं थे. बल्कि सभ्यता और संस्कृति में भी दोनों एक दूसरे में रचते बसते जा रहे थे. तब मिडल ईस्ट में इजरायल और तुर्किए के बाद ईरान तीसरा ऐसा देश था. जहां यहूदियों की तादाद सबसे ज्यादा थी. करीब एक लाख यहूदी ईरान में रहते थे. दावा किया जाता है कि तब इजरायल से व्यापार के लिए ईरान आने वाले कारोबारियों का जोरदार स्वागत किया जाता था.
शाह के खिलाफ तेजी से गुस्सा बढ़ने लगा
60 के दशक के अंत में ईरान में शाह के लिए मुश्किलें खड़ी होने लगीं. इजरायल से करीबी और आधुनिकता की पैरोकारी से खफा ईरान का कट्टरपंथी धड़ा शाह के खिलाफ लामबंद होने लगा. तो महंगी पार्टी, और शाही ठाठ बाट पर पैसे की बर्बादी से लोगों में शाह के खिलाफ तेजी से गुस्सा बढ़ने लगा. 1971 में पर्शियन साम्राज्य की 2500वीं सालगिरह पर महंगे जश्न की तस्वीरों को देखकर ईरानी लोगों का सब्र जवाब दे गया. इस दौरान शाह के सबसे बड़े आलोचक अयातुल्लाह खामेनेई विरोध की आवाज बनकर उभरे और 1979 में इस्लामिक क्रांति के जरिए शाह को सत्ता से बेदखल कर दिया गया.
ईरान में इस्लामी क्रांति
ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद इजरायल और ईरान में अदावत की शुरुआत हुई. इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान खुद को एक इस्लामिक ताकत के रूप में पेश करना चाहता था. इसलिए उसने इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीन के मुद्दे को तरजीह देना शुरु किया. जिसे मिडल ईस्ट के मुस्लिम देशों ने छोड़ दिया था. नई ईरानी हुकूमत ने अमेरिका को ईरान में बड़ा शैतान और इजरायल को छोटा शैतान कहा. उसे मिटाने तक की कसम खा ली. इतना ही नहीं ईरान ने इजरायल के साथ सभी रिश्ते खत्म कर दिए. तब से शुरु हुई दुश्मनी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है.
खराब रिश्तों में भी इजरायल ने की ईरान की मदद
इस्लामिक क्रांति और ईरान में इजरायल विरोधी सरकार की ताजपोशी के बाद भी इजरायल ईरान की मदद के लिए तब आगे आया जब, इराक ने 1980 में उस पर हमला बोला. बताया जाता है कि इस युद्ध में इजरायल ने ईरान की हथियारों और साजों सामान से मदद की. इतना ही नहीं ईरान के लिए सद्दाम हुसैन से सीधे भिड़ते हुए इजरायल ने अपने फाइटर जेट्स भेजकर इराक के एटमी अड्डों को तबाह भी कर डाला. लेकिन ईरान की मदद के लिए बढ़ा इजरायली हाथ भी दोनों की दोस्ती को पटरी पर लाने में कामयाब नहीं हुआ.
बढ़ती चली गई दुश्मनी
दोनों में तेजी से बदलते वक्त के साथ दुश्मनी बढ़ती गई. इस दौरान इजरायल और ईरान मिडल ईस्ट में अपनी ताकत और प्रभाव मजबूत करने में जुटे रहे. ईरान पर आरोप है कि उसने सीरिया, इराक, लेबनान और यमन में इजरायल विरोधी सशस्त्र गुट खड़े किए और उसे आर्थिक मदद दी. प्रतिरोध की धुरी के रूप में मशहूर ये गुट अलग फिलिस्तीन का समर्थन करने के साथ साथ इजरायल को अपना दुश्मन मानता है. हिजबुल्ला, हमास से लेकर कई ऐसे गुट अभी भी सक्रिय हैं, जिसके पीछे ईरान की ताकत है. ईरान में इजरायल विरोधी भावना दिनों दिन मजबूत होती जा रही है, जानकार इसके लिए ईरान की मौजूदा सरकार को जिम्मेदार बताते हैं.
ईरान क्यों इजरायल के लोगों से नफरत करता है?
ईरान-इजरायल की दुश्मनी उस मुकाम तक पहुंच चुकी है, जिसका अंजाम महाविनाशक होगा. क्योंकि खलीफा बनने की ख्वाहिश पाले ईरान तेजी से एटमी हथियार हासिल करने में जुटा है. तो इजरायल के पास भी ऐसे विध्वंसक हथियार होने के दावे किये गये हैं. अमेरिका के बाद जितने देशों ने भी परमाणु बम बनाया. उसका काउंटडाउन अगस्त 1945 में शुरु हो गया था. दुनिया के पहले परमाणु हमले का बाकी देशों पर बड़ा असर हुआ.
परमाणु बम किसी संजीवनी की तरह..
सबने ये माना कि शत्रुओं से बचने के लिए परमाणु बम किसी संजीवनी की तरह हैं. उन्हें पता था कि परमाणु ताकत के डर से कट्टर दुश्मन भी हमला करने से पहले हजार बार सोचेगा. इसलिए ईरान और इजरायल ने भी दशकों पहले सीक्रेट परमाणु कार्यक्रम लॉन्च किया. अपने दोस्तों से भी ये बात छिपाकर रखी. बिना किसी को खबर लगे अरबों-खरबों रुपये खर्च करके न्यूक्लियर रिसर्च की. बड़े-बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाए और जबतक दुनिया को पता चला. तब तक इनका परमाणु कवच तैयार हो गया. इजरायल का परमाणु बम चारों तरफ से घिरे मुस्लिम देशों से बचने की गारंटी है. जबकि ईरान को खलीफा बनने के लिए परमाणु बम की जरूरत है.