Donald Trump फिर से जीते तो भारत पर होगा क्या असर? जान लीजिए सबकुछ

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The Impact of Trump Win on India: करीब आठ महीने बाद अमेरिका को नया राष्ट्रपति मिल जाएगा. आज दुनिया में सबकुछ बाजार तय करता है. जिसका अधिकांश कारोबार डॉलर में होता है. यूएस (US) तो वैसे ही सुपररिच और सुपरपावर है. लिहाजा अमेरिकी संसद में होने वाली गतिविधियों पर पैनी नजर रखना लाजिमी होता है. ग्लोबल इकोनॉमी के चार्ट में भारत टॉप 5 पर है. पीएम मोदी (PM Modi) अगले कार्यकाल में यानी (Modi 3.0)  में भारत को तीसरे पायदान पर लाने की बात कर चुके है. ऐसे में अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald  Trump) बनें या फिर जो बाइडेन (Joe Biden ) ही बने रहें, भारत – ‘होए कोउ नृप हमें का हानि’ की तर्ज पर चुप नहीं बैठ सकता है.

रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स में बेसिक अंतर

ट्रंप जीते तो भारत पर क्या असर होगा? इस विश्लेषण से पहले हमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स में बेसिक अंतर समझने की जरूरत पड़ेगी. यूं तो दोनों में बहुत अंतर है. गहराई से जाने के बजाए बेसिक अंतर की बात करें तो वो यह है कि ‘डेमोक्रेट्स पार्टी’ अपने नाम की तरह है. जो नीतियों में भी उदार मानी जाती है. इसके अधिकांश नेता दूसरे देश के निवासियों को वीजा देने का मामला हो या प्रवासियों/शर्णार्थियों की मदद ऐसे कामों के लिए उदारवादी रवैया रखते हैं. वहीं रिपब्लिकिन पार्टी दक्षिणपंथी पार्टी है, इसके नेता राष्ट्रवाद की बातें करते हैं और बाकी दुनिया के लिए उदार रवैया नहीं रखते हैं.

2016-2020 ट्रंप का पहला कार्यकाल 

8 नवंबर, 2016 को हुए 58वें चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के कैंडिडेट ट्रंप ने डेमोक्रैटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को हराया था जबकि तमाम सर्वे हिलेरी क्लिंटन को भावी विजेता बता रहे थे. 9 नवंबर को पीएम मोदी ने ट्वीट करके ट्रंप को बधाई दी थी. उन्होंने ट्विटर पर लिखा- ‘हमें आपके साथ काम करने का इंतजार है. हम मिलकर भारत-अमेरिका द्विपक्षीय मुद्दों को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे’. ये जनरल कर्टसी थी. जिसे भारत ने निभाया. लेकिन उधर से ट्रंप ने क्या किया आइए बताते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान, भारत को एक ऐसा राष्ट्र माना था जो ‘टैरिफ किंग’ है. यानी ट्रंप ने भारत को टैरिफ किंग कहा था. साल 2019 में उन्होंने अमेरिकी बाजारों में भारत की जमीनी पहुंच खत्म कर दी. तब ट्रंप ने आरोप लगाया था कि भारत ने अमेरिकी कंपनियों को अपने विशाल बाजार में न्यायसंगत और उचित पहुंच नहीं दी. 

ट्रंप जीते तो भारतीय कंपनियों पर असर पड़ सकता है?

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो दोबारा राष्ट्रपति बनने की रेस में हैं, उन्होंने प्राइमरी शुरू होने के पहले ही एक बार फिर से ‘अमेरिका फर्स्ट’ की पॉलिसी पर जोर दिया है. उन्होंने नवंबर, 2023 में कुछ अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर भारत द्वारा लगाए गए हाई टैरिफ यानी उच्च करों का मामला जोर शोर से उठाया था. हार्ले-डेविडसन बाइक ऐसा ही एक प्रोडक्ट है. ट्रंप ने कहा है कि अगर वो दोबारा चुने गए तब वो भारतीय उत्पादों पर पारस्परिक कर लगाएंगे. यानी टिट फॉर टैट (जैसे को तैसा) की नीति अपनाएंगे.

ट्रेड वार के लिए तैयार रहे भारत

कई महीने पहले फॉक्स बिजनेस न्यूज को दिए इंटरव्यू में, ट्रंप ने भारत के टैक्स पॉलिसी की कड़ी आलोचना करते  हुए आरोप लगाया था कि ये काफी अधिक है. आगे उन्होंने कहा, मैं एक समान कर व्यवस्था का पक्षधर हूं, अगर भारत हमसे टैरिफ लेता है तो हम भी उसी हिसाब से टैक्स वसूली करेंगे. भारत टैरिफ के मामले में बहुत बड़ा बाजार है. उनके पास 100 प्रतिशत, 150 प्रतिशत और 200 प्रतिशत टैरिफ हैं. वे हमसे क्या कराना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि हम वहां जाएं और अमेरिकी कंपनी का प्लांट लगाएं और फिर वहां भी आपके हिसाब से चलें, तो ये कैसे होगा?

यानी भारत को नए ट्रेड वॉर के लिए तैयार रहना होगा. भारत, ट्रंप के सर्वव्यापी 10% टैरिफ से प्रभावित होगा. अमेरिका की एक लॉबी भारत पर एक्स्ट्रा टैरिफ ठोकने की पक्षधर है. भारत में मेड इन इंडिया, मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल के बाद लोकल को ग्लोबल ब्रांड बनाने लिए नई सोच के साथ काम हो रहा है. ऐसे में विदेशों पर निर्भरता कम हुई है.

अमेरिकी लॉबी फल, मेवों और सोयाबीन सहित अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए भारत के बाजार में आसान पहुंच पर जोर देगी. ट्रंप के पहले कार्यकाल में, भारत ने अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर टैरिफ लगाकर स्टील और एल्यूमिनियम पर अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ जवाबी एक्शन लिया था. उससे वो लॉबी तिलमिलाई हुई है. उस समय भी कई विवाद विश्व व्यापार संगठन (WTO) की चौखट में गए और फिर आपसी सहमति से सुलझे. ऐसे में कुल मिलाकर ट्रंप का दूसरा संभावित कार्यकाल विस्तारित ट्रेड वार के खतरे से इंकार नहीं करता है.

H-1B वीजा अनुदान और IT प्रक्रियाओं को आउटसोर्स करने के विरोधी

ट्रंप, भारतीयों के लिए अमेरिका में काम करने के लिए H1B वीजा का विरोध करते हैं. उनका मानना है कि H-1B वीजा देने में उदारवादी रवैया अपनाने और IT प्रक्रियाओं को आउटसोर्स करने से अमेरिका में रोजगार के मौके कम हुए हैं. क्योंकि इससे ऑनसाइट नौकरियां नॉन-अमेरिकी वर्क फोर्स को ट्रांसफर हो रही हैं. इस वजह से अमेरिकी आईटी सेक्टर में भारत का वर्चस्व स्थापित हो चुका है. ऐसे में अगर ट्रंप जीते और उन्होंने कुछ कड़े फैसले लिए तो इससे भारतीय आईटी कंपनियों के लिए स्पष्ट खतरा हो सकता है. एक अनुमान के मुताबिक उन भारतीय आईटी कंपनियों पर असर पड़ सकता है, जिनका अधिकांश रेवेन्यू ऑनसाइट बिजनेस से आता है. वहीं इसके अलावा भारत के इक्विटी मार्केट पर असर पड़ सकता है. 

बीते दो सालों में भारत ने रूस से जमकर कच्चा तेल और हथियार खरीदे हैं. भारत ने रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम समेत कई डिफेंस डील की हैं. ऐसे में अमेरिकी कट्टरपंथी लॉबी भारत को दबाव में लेने के लिए एक बार फिर से ‘काट्सा’ एक्ट का डर दिखाकर अपने हथियार बेचने का प्रस्ताव दे सकती है.

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