DNA: कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में मंदिर तोड़कर बनाया था अढाई दिन का झोपड़ा, 800 साल बाद हिंदू- जैन मांग रहे अपना हक

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DNA on Adhaai Din Ka Jhopda History: अजमेर की एक मस्जिद का नाम है ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’. नाम की तरह ही इस मस्जिद के निर्माण का इतिहास विवादित है. कुछ दिन पहले जैन संत और हिंदू संगठन, ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ नाम की इस मस्जिद में पहुंच गए. वहां उन्होंने पूजा पाठ की मांग की. उन्होंने इस जगह को प्राचीन हिंदू और जैन मंदिरों का स्थान बताया.

ढाई दिन में ऐबक ने बनवा दी मस्जिद

आज हम अजमेर की इस मस्जिद की सच्चाई आपको बताएंगे, वो भी सबूतों के साथ. सबसे पहले हम आपको ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद के निर्माण की रोचक कहानी बताना चाहते हैं. इस मस्जिद का नाम ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ इसलिए पड़ा था क्योंकि ये ढाई दिन में बनी थी. दिल्ली सल्तनत के पहले शासक कुतुबद्दीन ऐबक ने इसे बनवाया था.

ढाई दिन में मस्जिद बनना मुमकिन नहीं था, इसीलिए ऐबक ने 20 से 30 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी. मस्जिद से पहले इस जगह पर हिंदू और जैन मंदिरों के अलावा एक संस्कृत विश्वविद्यालय भी था. इस्लामी शासक मोहम्मद गोरी के आदेश पर मंदिरों और संस्कृत विश्वविद्यालय को तोड़ा गया था. 

हिंदू मंदिर को तोड़कर बदलवा दिया रूप

मस्जिद बताई गई ये इमारत ASI की संपत्ति है. इस ऐतिहासिक इमारत की कारीगरी देखकर कोई नहीं कह सकता, कि ये मस्जिद रही होगी. किसी भी मस्जिद में हिंदू देवी देवताओं के रूप को नहीं उकेरा जाता है. लेकिन ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद में हिंदू वास्तुकला और देवी देवताओं की कलाकृतियां छाई हुई है. हम आपको इससे जुड़े 5 सबूत दिखाते हैं.

– मस्जिद के खंभों पर देवी देवताओं की कलाकृतियां हैं.

– मस्जिद की वास्तुकला हिंदू-जैन धर्म से जुड़ी हुई है.

– मस्जिद के एक खंभे पर मां काली की कलाकृति बनी हुई है.

– मस्जिद की कुछ दीवारों पर स्वस्तिक बना हुआ है.

– मस्जिद के खंभों पर सांप, मछली, कछुआ जैसी कारीगरी है.

ASI की रिपोर्ट में है सारा कच्चा चिट्ठा

इन सबूतों को अपनी आंखों से देखने के बाद, संदेह नहीं रह जाता है, कि जिस जगह को ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद बताया जाता है, वो पुरातन हिंदू-जैन मंदिर थे. इस इमारत में देवी देवताओं की जितनी भी कलाकृतियां हैं, उन्हें खंडित किया गया है. भारतीय पुरातत्व विभाग की एक पुरानी रिपोर्ट से हमें इसकी सच्चाई पता चली.

Archeological Survey Of India ने वर्ष 1861 में ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद पर एक रिपोर्ट तैयार की थी इस रिपोर्ट को ASI के तत्कालीन Director General Alexander Cunningham ने तैयार किया था. इस रिपोर्ट का नाम था ‘Four Reports Made During 1862-63-64-65 Volume 2’….ये रिपोर्ट किताब की शक्ल में भी मौजूद है.

खंभों पर देवी-देवताओं की आकृतियां

इस रिपोर्ट के पेज नंबर 158 में लिखा है कि ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद’ को हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था. पेज नंबर 259 में बताया गया है कि खंभों पर चार हाथ वाली कलाकृतियां हैं. इसमें देवी काली की कलाकृति है. पेज नंबर 259 पर बताया गया है कि दीवारों पर देवनागरी लिपि में अक्षर लिखे हुए हैं.

पेज नंबर 260 पर बताया गया है कि इमारत के खंभे हिंदू मंदिरों से जुड़े हुए हैं. पेज नंबर 262 पर बताया गया है कि खंभों पर 11वीं और 12 वीं शताब्दी के कारीगरों ‘केशव श्री सिहाला और डाबरा’ के नाम लिखे हैं. क्या ये बात आपको हैरान नहीं करती कि ढाई दिन में बनने वाली मस्जिद के खंभे, उससे 200 साल ज्यादा पुराने हैं. ASI को यहां से हिंदू मंदिरों के कई पुरातात्विक सबूत भी मिले.

खुदाई में मिल चुका है शिवलिंग

वर्ष 1875-76 में ASI को 2 शिलालेख मिले थे. वर्ष 1891 में आई रिपोर्ट Indian Antiquary : A Journal of Oriental Research में इसका जिक्र है. इसके पेज नं. 201 में बताया गया कि शिलालेख, चाहमान राजा विग्रहराज ले जुड़े हैं. शिलालेखों में दो नाटक ‘ललिता विग्रहराज और हरिकेल’ चिन्हित हैं.

वर्ष 1902 में ASI ने दूसरी बार इस जगह पर खुदाई की थी. तब उन्हें सफेद रंग का शिवलिंग मिला था. इसका जिक्र 1902-03 की वार्षिक रिपोर्ट में भी किया गया था. वर्ष 1909 में आई एक और रिपोर्ट में बताया गया कि इस मंदिर का निर्माण चाहमान राजा विग्रहराज विसलदेव ने करवाया था.

1192 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था हमला

तस्वीरों और ऐतिहासिक साक्ष्यों के बाद अब बारी है वीडियो सबूतों की. हमने इस जगह से एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की, जिससे आपको ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद की छिपाई गई सच्चाई पता चलेगी.

वहां लगा बोर्ड और पास में ही टूटे हुए स्वस्तिक चिन्ह, इस इमारत के वर्तमान और इतिहास के साक्ष्य हैं. इस इमारत की सुनी सुनाई कहानियों का सच, इतिहास की किताबों और पुरात्तव विभाग की रिपोर्ट्स में है. ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद, आज इबादतगाह है, लेकिन वर्ष 1192 से पहले ये हिंदू और जैन मंदिर था.

हिंदू मंदिर को जबरन बना दिया मस्जिद  

खंभों पर हिंदू देवी देवताओं की खंडित कलाकृतियों के बीच यहां 5 बार की नमाज पढ़ी जाती है. विवाद इसी पर है कि जो जगह हिंदू-जैन मंदिर और संस्कृत विश्वविद्यालय हुआ करते थे, वो आखिर कब तक मस्जिद कहे जाते रहेंगे. इमारत में बनी कलाकृतियां, इस स्थान का वो इतिहास है, जो वर्षों छिपाने के बावजूद आज भी पहचाना जा सकता है.

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद निदेशक डॉक्टर ओमजी उपाध्याय कहते हैं कि जितने भी इस्लामी हमलावरों ने भारत पर आक्रमण किया, उन्होंने यहां के मूल धर्मों को चोट पहंचाई. मंदिरों को नष्ट करना, इसी कट्टर विचारधारा का सबूत थे. मस्जिद कही गई ये जगह भी इसी कट्टर विचारधारा की भेंट चढ़ गई.

असेंबली के स्पीकर ने नमाज पढ़ने पर जताया ऐतराज

अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद राजनीतिक विवाद का विषय भी बन गया है. राजस्थान विधानसभा के स्पीकर वासुदेव देवनानी के मुताबिक ASI संपत्ति पर इबादत करने की छूट का विरोध होना चाहिए. अजमेर की इस मस्जिद को मंदिर बताने का ये नया विवाद अभी और बढ़ सकता है. क्योंकि इस जगह पर जैन और हिंदू समाज दोनों एक साथ अपना हक जता रहे हैं.

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