‘टपका’ आम से बनता है भुसावर का प्रसिद्ध अचार: राजा-महाराजा भी थे दीवाने, पॉपुलर बनाने के लिए खुद करते थे ब्रांडिंग, आज विदेशों तक डिमांड – Rajasthani Zayka Headlines Today News

गर्मी का सीजन हो और थाली में कैरी, लिसौड़े, टैंटी, नींबू, कैर, सांगरी का चटपटा अचार मिल जाए….तो क्या ही कहने। नाम लेते ही मुंह में पानी आने लगता है। अचार केवल आम आदमी ही नहीं राजा-महाराजाओं की थाली का भी हिस्सा रहा है।

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राजस्थान का ऐसा ही प्रसिद्ध और जायकेदार अचार है भुसावर का, जिसे भरतपुर की पूर्व रियासत के महाराजा सैनिकों को भेजकर मंगवाते थे। भुसावर से अचार के व्यापारियों को भरतपुर लाकर बसाया। जब कभी बिजनेस नहीं चलता था तो वे खुद उसे खरीदकर अचार की ब्रांडिंग तक करते थे। बताते हैं मुगल शासन के दौरान जब अकबर उस रूट से गुजरते थे तो भुसावर में रुक कर टपका वैरायटी के आम का स्वाद चखते थे।

आज राजस्थानी जायका में आपको भी लेकर चलते हैं भुसावर, जहां के बगीचों में उगने वाली कैरी से बना अचार देश-विदेश में फेमस है…

भुसावर में एंट्री करते ही ऐसे सैकड़ों बोर्ड लगे आपको दिखाई देंगे।

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आम के बगीचों से अचार फैक्ट्री तक का सफर

भरतपुर से करीब 55 किलोमीटर दूर भुसावर कस्बे में दाखिल होते ही सौंफ, कलौंजी, मेथी, हींग और सरसों के तेल में बने अचार की सौंधी महक आपका मन मोह लेगी। इन दिनों कच्ची कैरी की बहार है और भुसावर क्षेत्र में घर-घर में अचार बनाया जा रहा है।

बुजुर्ग चेतराम ने बताया कि आजादी से पहले भुसावर में सोने-चांदी के साथ साथ कपड़े का बड़ा व्यापार हुआ करता था। जुलाहा समाज के लोग हाथों से खादी तैयार करते थे, जिसकी दूर-दूर तक डिमांंड होती थी। कलकत्ता, सूरत से लेकर कई बड़े-बड़े व्यापारी यहां कपड़ा खरीदने आते थे।

एक दुकान पर डिब्बों में सजे कई वैरायटी के अचार।

एक दुकान पर डिब्बों में सजे कई वैरायटी के अचार।

उस दौर में भुसावर में आम के बगीचों की बहुतायत थी। घर-घर में लोग अचार बनाया करते थे और अपने मिलने वाले लोगों, रिश्तेदारों, बहन-बेटियों के घर भी भिजवाते थे। अचार में इस्तेमाल होने वाली कैरी, सरसों के तेल की सौंधी महक ने लोगों के दिल में जगह बनाई। अचार के आदान-प्रदान की जो परंपरा थी वही धीरे-धीरे यहां के लोगों का रोजगार भी बन गई। अचार की मांग बढ़ने लगी और उद्योग पनपने लगा।

कई पीढ़ियों से काम कर रहे व्यापारी

आज भुसावर में अचार की 10-12 बड़ी फैक्ट्रियां हैं, वहीं करीब 250 से ज्यादा छोटी-बड़ी दुकानें और घरों में भी अचार बड़े पैमाने पर तैयार हो रहा है। व्यापारी भूपेश गोयल ने बताया- मेरे पिता ने 45 साल पहले ये काम शुरू किया था, जो आज भी चल रहा है।

पिछले 40 वर्ष से अचार का व्यापार कर रहे विजय अग्रवाल ने बताया कि भुसावर के अचार की प्रसिद्धी आजादी से भी पुरानी है। इसकी सप्लाई जयपुर, जोधपुर, कोटा, लखनऊ, हाथरस सहित कई देश के कई शहरों में होती है। हैदराबाद, मुंबई, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में रहने वाले प्रवासी राजस्थानी अपने साथ यहां का अचार पैक कराकर ले जाते हैं।

मैंगो के सीजन में करीब 3 महीने तक कई छोटी-बड़ी फैक्टियों में पारंपरिक तरीके से अचार तैयार किया जा रहा है।

मैंगो के सीजन में करीब 3 महीने तक कई छोटी-बड़ी फैक्टियों में पारंपरिक तरीके से अचार तैयार किया जा रहा है।

क्यों खास है भुसावर की कैरी और अचार?

व्यापारी विवेक गर्ग ने बताया कि भुसावर में अचार का कारोबार यहां की बागवानी से ही शुरू हुआ था। यहां कई किसानों के आम के बागान हैं। यहां की विशेष जलवायु में जो कैरी लगती है, उसकी धमक दिल्ली तक हुआ करती थी। सबसे खास बात है कि उसमें जो जाला पड़ता है, वह अचार को लंबे समय तक खराब नहीं होने देता।

स्थानीय निवासी चंदराम ने बताया कि एक जमाने में यहां आम के 10 हजार से ज्यादा पेड़ हुआ करते थे। अब सरकारी बाग सहित 5 हजार के करीब ही आम के पेड़ बचे हैं।

भुसावर में करीब 18 हेक्टेयर में आम की बागवानी हो रही है। पहले यहां 50 हेक्टेयर तक आम के बागान फैले हुए थे।

भुसावर में करीब 18 हेक्टेयर में आम की बागवानी हो रही है। पहले यहां 50 हेक्टेयर तक आम के बागान फैले हुए थे।

56 प्रकार के मसालों का होता है इस्तेमाल

भुसावर का अचार बेहतरीन क्वालिटी के मसालों के लिए जाना जाता है। व्यापारी विजय अग्रवाल ने बताया कि राई, जीरा, सौंफ, मेथी दाना, कलौंजी, लाल मिर्च, हल्दी, अजवाइन मंगरैला, चार प्रकार के नमक, गरम मसाला, लौंग, डोडा, दालचीनी, तेजपात जैसे 56 प्रकार के मसालों के साथ बनाया जा रहा है।

अचार बनाने में 56 तरह के मसालों का इस्तेमाल करते हैं।

अचार बनाने में 56 तरह के मसालों का इस्तेमाल करते हैं।

भरतपुर का नाम सरसों बेल्ट के लिए मशहूर है। यहां की जमीन पर उगी सरसों से निकले शुद्ध तेल का इस्तेमाल भी अचार को खास बनाता है। यही कारण है कि भुसावर का अचार राजस्थान ही नहीं बल्कि देश एवं विदेशों में भी चटकारों के साथ खाया जा रहा है।

महाराजा बृजेंद्र सिंह खुद करते थे अचार की ब्रांडिंग

भरतपुर की तत्कालीन रियासत के महाराजा बृजेंद्र सिंह को अचार-मुरब्बा बहुत पसन्द था, जो अर्दली (सेवक) को भेज कर प्रति सप्ताह भुसावर से ताजा आम व अचार-मुरब्बा मंगवाते थे। एक बार महाराजा बृजेंद्र सिंह वर्ष 1945-46 में भुसावर पधारे थे। उन्होंने यहां के व्यापारियों से खुश होकर भरतपुर में बाजार स्थापित करने को कहा। उन्हें जगह देकर भरतपुर में भी भुसावर का अचार-मुरब्बों का बाजार लगवाया।

तत्कालीन भरतपुर रियासत के महाराज बृजेंद्र सिंह (मध्य में)।

तत्कालीन भरतपुर रियासत के महाराज बृजेंद्र सिंह (मध्य में)।

एक वक्त ऐसा भी आया जब ग्राहकी कम होने पर भुसावर के अचार व्यापारी उदास हुए। महाराजा को भनक लगी तो उन्होंने सभी व्यापारियों से अचार-मुरब्बा खरीद कर प्रजा को बंटवाया था। इस तरह से ब्रांडिंग के बाद यह अचार पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश तक मशहूर हो गया।

आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब

अकबर ने दिया था आम को शहद में महफूज रखने का हुक्म

भुसावर क्षेत्र का प्रसिद्ध टपका और लंगडा आम के तो राजा-महाराजा भी दीवाने थे। मुगल बादशाह अकबर को भुसावर के आम इस कदर पसंद थे कि उन्होंने आमों के टुकड़ों को शहद में महफूज करने का हुक्म दिया था ताकि आम का मौसम खत्म होने के बाद भी उसका लुत्फ लिया जा सके।

अकबरनामा में भी एक किस्सा दर्ज है कि 1571 में ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाते समय अकबर भुसावर होकर गुजरे थे, तब उन्होंने यहां के फलों का स्वाद चखा था।

अचार-मुरब्बा अब भुसावर का लघु उद्योग बन गया है।

अचार-मुरब्बा अब भुसावर का लघु उद्योग बन गया है।

25 वैरायटी का अचार-मुरब्बे, 250 से ज्यादा दुकानें

भुसावर में अचार एवं मुरब्बे की दो दर्जन से अधिक वैरायटी तैयार कर बेची जाती हैं। जिनमे मुख्य रूप से आम (कैरी), खट्टा एवं मीठा नींबू, लिसोड़ा, गाजर, लहसुन, अदरक, हरी मिर्च, लाल मिर्च, हींग, कटहल, टेंटी (कैर), आंवला, गोभी, करेला, कैर सांगरी, बेल का मुरब्बा, आंवला मुरब्बा, सेव मुरब्बा, नवरत्न चटनी, लहसुन चटनी, सिंघाड़ा सहित अन्य कई प्रकार के अचार मुरब्बे और चटनी यहां बनायी जाती हैं, जिनके दीवाने देशभर में मौजूद हैं।

भुसावर के अचार की डिमांड विदेशों तक रहती है।

भुसावर के अचार की डिमांड विदेशों तक रहती है।

आज भुसावर सहित आस पास के क्षेत्र में 250 से अधिक छोटी बड़ी दुकानें संचालित हैं। अचार की मांग दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बंगाल सहित अनेक प्रान्तों में है। अचार के व्यवसाय का सालाना टर्नओवर 5 करोड़ के करीब होता है।

सबसे बडी बात यहां के अचार मुरब्बा उद्योग के कारण यहां के बेरोजगारों सहित बागवानों को रोजगार प्राप्त होता है। यहां के किसान अपनी बागवानी को दूर दराज के क्षेत्रों में जाकर बेचने के बजाय यहां के व्यापारियों को बेच देते हैं, जिससे उन्हें अच्छा दाम भी मिल जाता है।

जयपुर निवासी महेश गुरनानी और आशीष अग्रवाल ने बताया कि वे घर में खाने के लिए कई साल से भुसावर का प्रसिद्ध अचार ही खरीद रहे हैं। हम हमेशा सबकुछ परखने के बाद ही खरीदते हैं। कई बार बाजार में मिलने वाले अचार में सिरके मिला देते हैं जो स्वास्थ्य खराब करता है। लेकिन भुसावर के अचार पर हमारा भरोसा बना हुआ है।

पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर

ये है जोधपुर का प्रसिद्ध मैंगो पिज्जा। जोधपुर के गौरव पथ स्थित बंगलो-12 रेस्टोरेंट में जोधपुर वासियों के लिए इस बार खास मैन्यू में मैंगो पिज्जा तैयार किया किया है। यहां की मैंगो करी, मैंगो पनीर टिक्का भी बेहद खास है। रेस्टोरेंट के ओनर अशोक विश्नोई ने बताया कि गर्मियों में मैंगो फ्लेवर की डिमांड के कारण इन डिश को मेन्यू में सेट किया है। शेफ अमरीश और सत्ते सिंह ने मैंगो पिज्जा से लेकर मैंगो पनीर टिक्का जैसी रेंज तैयार की है….(CLICK कर पढ़ें पूरी स्टोरी)

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One Comment

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