नष्ट हो जाएंगे दुनिया के अधिकांश मैंग्रोव? जानें ये इंसानों के लिए क्यों जरूरी हैं – India TV Hindi

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मैंग्रोव वनों का नष्ट होते जाना एक चिंता का विषय है।

पहले वैश्विक मैंग्रोव आकलन के निष्कर्षों की मानें तो दुनिया के आधे से अधिक मैंग्रोव इकोसिस्टम के नष्ट होने का खतरा है और 5 में से एक को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के आंकड़ों का इस्तेमाल कर की गई एक स्टडी के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन से मैंग्रोव इकोसिस्टम के एक तिहाई यानी कि 33 फीसदी हिस्से को खतरा है। अध्ययन के मुताबिक, वनों की कटाई, विकास, प्रदूषण और बांध निर्माण मैंग्रोव के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं, लेकिन समुद्र के स्तर में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर तूफानों की बढ़ती आवृत्ति के कारण इन पारिस्थितिक तंत्रों के लिए खतरा बढ़ गया है।

आकलन के निष्कर्ष से क्या मिलेगी मदद?

‘कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क’’ के अनुरूप, जैव विविधता के नुकसान पर काबू पाने के लक्ष्य की दिशा में प्रगति पर नजर रखने के लिए IUCN की पारिस्थितिक तंत्र की सूची महत्वपूर्ण है। IUCN महानिदेशक ग्रेथेल एगुइलर ने कहा कि आकलन के निष्कर्ष से हमें उन मैंग्रोव वनों को बहाल करने के लिए मिलकर काम करने में मदद मिलेगी जो हमने खो दिए हैं और जो अब भी हमारे पास हैं, उनकी रक्षा की जाएगी। इस स्टडी ने दुनिया के मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को 36 अलग-अलग क्षेत्रों में वर्गीकृत किया और प्रत्येक क्षेत्र में खतरों और पतन के जोखिम का आकलन किया। IUCN की अगुवाई में 44 देशों में 250 से ज्यादा एक्सपर्ट्स ने इस काम में सक्रिय भागीदारी दिखाई।

मैंग्रोव क्या होते हैं और कहां पाए जाते हैं?

मैंग्रोव (Mangrove) कुछ ऐसे पेड़ या पौधों का समूह होते हैं जो खारे या अर्ध खारे पानी में पाए जाते हैं। अक्सर यह ऐसे तटीय क्षेत्रों में होते हैं जहां कोई नदी किसी सागर में जाकर मिल रही होती है। ऐसी जगहों पर खारे और मीठे पानी का मिलन होता है और मैंग्रोव को पनपने में मदद मिलती है। सैटेलाइट द्वारा किए गए चित्रण के आधार पर इनका वैश्विक विस्तार 1,37,800 वर्ग किमी होने का अनुमान है, जिसका अधिकांश भाग 25 अक्षांश उत्तर और 25 अक्षांश दक्षिण के बीच में स्थित है। माना जाता है कि इस सदी की शुरुआत में दुनिया में जितने मैंग्रोव वन थे, आज उनका 60 प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो चुका है।

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मैंग्रोव वनों के साये में तमाम जिंदगियां सांस लेती रहती हैं।

लाखों इंसानों की लाइफलाइन हैं मैंग्रोव

मैंग्रोव दुनिया में लाखों इंसानों के लिए लाइफलाइन का काम करते हैं। मैंग्रोव वनों के पारंपरिक निवासियों द्वारा इनका इस्तेमाल भोजन, दवा, ईंधन और इमारती लकड़ी के लिये सदियों से किया जाता रहा है। तटीक इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के लिये जीवनयापन का साधन इन वनों से प्राप्त होता है। मैंग्रोव सिर्फ इंसानों की नहीं, बल्कि अपने इलाके में पाई जाने वाले तमाम जीवों की लाइफलाइन का काम करते हैं। इनकी वजह से एक तरफ जहां मूंगे की चट्टानें सुरक्षित रहती हैं, तो दूसरी तरफ हिरनों, बाघों एवं मछलियों समेत तमाम वन्य एवं जलीय जीव फलते-फूलते हैं। यदि तटों पर मैंग्रोव न हों तब वहां या तो मछलियां होंगी ही नहीं या उनकी संख्या बहुत कम होगी। ऐसा ही कुछ दूसरे जीवों के मामले में भी है।

हमारी धरती के लिए क्यों जरूरी हैं मैंग्रोव?

मैंग्रोव वन कई मायनों में धरती के लिए बेहद जरूरी हैं। एक तरफ जहां ये दर्जनों जीव-जंतुओं की शरणस्थली हैं, वहीं दूसरी तरफ ये प्राकृतिक जल शोधक या नेचुरल वॉटर प्यूरिफायर का काम करते हैं। दरअसल, मैंग्रोव पानी के अन्दर जड़ों का जो जाल बनाते हैं उन पर स्पंज तथा शैलफिश चिपके रहते हैं। ये जीव पानी को छान कर उसमें से तलछट तथा पोषक तत्वों को अलग कर देते हैं और समुद्र के पानी को साफ करते हैं। ये पानी मूंगे की चट्टानों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिये आवश्यक होता है। इसके अलावा मैंग्रोव तटरेखाओं को भी स्थिर करते हैं, कटाव को रोकते हैं और भूमि और वहां रहने वाले लोगों को समुद्री लहरों और तूफानों से बचाते हैं।

मैंग्रोव वनों के कई और फायदे भी हैं

मैंग्रोव वनों में सूर्य की पराबैंगनी-बी किरणों से बचाव की क्षमता होती है और ये उसके घातक प्रभावों से रक्षा करते हैं। इसके अलावा मैंग्रोव वन ग्रीन हाउस गैसों के प्रभावों को कम करने में भी अहम भूमिका अदा करते हैं। मैंग्रोव वन, ज्वारीय लहरों, भारी वर्षा तथा तूफानों के साथ आने वाली बाढ़ से भी तटों की रक्षा करते हैं। मैंग्रोव वन लहरों की तीव्रता को कम करके तटों के क्षरण को रोकते हैं। मैंग्रोव पौधों की प्रजातियों का इस्तेमाल सर्पदंश, चर्मरोग, पेचिश तथा मूत्र सम्बन्धी रोगों के उपचार के साथ-साथ रक्त शोधक एवं गर्भ निरोधक के रूप में भी किया जाता है।

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