राजस्थान में बिजली संकट क्यों?: सोलर प्लांट्स की नीलामी सेकी से ऊर्जा विकास निगम ने ली, न वर्कऑर्डर किए न बिजली खरीदी – Jaipur Headlines Today News

देश का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा भंडार होने के बावजूद राजस्थान बिजली संकट से जूझने के लिए मजबूर है। इसके लिए ऊर्जा विकास निगम की अदूरदर्शिता और गलत निर्णय जिम्मेदार हैं। एक उदाहरण सोलर प्लांट्स की नीलामी से भी जुड़ा है। केंद्र व अन्य राज्यों की तरह हमारी त
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बदले में प्लांट से मिलने वाली प्रत्येक यूनिट पर 7 पैसे कमीशन लेती थी। लेकिन 2023 में ऊर्जा विकास निगम ने कमीशन बचाने के नाम पर नीलामी का जिम्मा खुद उठाया, जबकि निगम के संसाधन इसके लिए सक्षम नहीं थे। नतीजा- कुछ हफ्ते में निकलने वाले वर्क ऑर्डर 1 साल तक भी तैयार नहीं हुए। इससे 1000 मेगावाट क्षमता के प्लांट्स का काम अटक गया, जो हमारी बिजली उपलब्धता बढ़ाता।
इस दौरान सरकार को दो टेंडर निरस्त भी करने पड़े। यही नहीं, निगम ने सेकी की तुलना में बिजली भी महंगी खरीदी। 2020 से 2022 के बीच सेकी ने 2.49 रु, 2 रु और 2.17 रुपए प्रति यूनिट बिजली खरीद तय की, लेकिन निगम ने 2.61 रु/यूनिट दर से मंहगी बिजली खरीद तय की निगम का तर्क है कि दर अलग-अलग कारकों पर निर्भर करती है।
आरपीओ लक्ष्य से पिछड़ता राजस्थान, क्योंकि ट्रांसमिशन सिस्टम तैयार नहीं
पर्याप्त मात्रा में सौर ऊर्जा का उत्पादन तो दूर हम केंद्र और राज्य के विद्युत नियामक द्वारा तय की गई मात्रा में इसे समय पर खरीद तक नहीं पाता। सभी राज्य पूरे साल खरीदी जाने वाली बिजली में से एक निश्चित मात्रा में रिन्यूएबल (सौर, पवन और जल) एनर्जी खरीदने के लिए बाध्य हैं।
इसे रिन्यूएबल एनर्जी परचेज ऑब्लिगेशन (आरपीओ) कहते हैं। लेकिन 2010 में इसके लागू होने से अब तक राज्य एक बार भी इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया है और हर वर्ष महंगे दाम में थर्मल बिजली खरीदता है और कीमत उपभोक्ताओं से वसूली जाती है। आरपीओ लक्ष्य पूरा ना करने पर राज्यों से आर्थिक दंड भी वसूले जाने का प्रावधान है। ऐसा होने पर इसका भी भार उपभोक्ताओं की ही जेब पर पड़ेगा।

* 2030 तक राज्य के लिए 43.3% अक्षय ऊर्जा खरीद तय की गई है। लेकिन इस ढर्रे के साथ लक्ष्य हासिल करना मुश्किल।
कैसे सप्लाई हो सौर ऊर्जा, ग्रिड स्टेशन ही सक्षम नहीं
भारत का सबसे बेहतरीन सोलर रेडिएशन राजस्थान में है। यह एक वर्ग मी. में प्रतिदिन 5.72 यूनिट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता देता है। हर साल 21 हजार मेगावाट सोलर ऊर्जा का उत्पादन है। लेकिन 15 हजार मेगावाट बिजली राज्य से बाहर चली जाती है। सोलर एनर्जी का इस्तेमाल ना कर पाने की वजह है कि हमारे ग्रिड स्टेशन्स बिजली ट्रांसमिशन में सक्षम नहीं हैं। पिछली सरकार में सोलर पार्क बनने थे, लेकिन दो साल बाद भी जमीन तक आवंटित नहीं हुई।
“पिछली सरकार ने अनियमितता बरती। उत्पादन की बजाय महंगे दामों में बिजली खरीदने की प्रवृत्ति रखी। भ्रष्टाचार बढ़ा। हमने 60 हजार करोड़ के टेंडर निकाले हैं, जिनमें 3200 मेगावाट थर्मल और 8000 मेगावाट सोलर ऊर्जा के हैं।”
-हीरालाल नागर, ऊर्जा मंत्री