राजस्थान की 11 सीटें क्यों हारे?: भाजपा ने बनाई रिपोर्ट, हार की वजह बने नेताओं के भी नाम; दिल्ली में हाईकमान लेगा क्लास – Jaipur Headlines Today News

राजस्थान में लोकसभा चुनावों में 25 सीटों की हैट्रिक का सपना देख रही भाजपा को 11 सीटों (गंगानगर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, बाड़मेर, टोंक-सवाईमाधोपुर, दौसा, भरतपुर, करौली-धौलपुर, बांसवाड़ा) पर हार का सामना करना पड़ा था। हार के बाद बीजेपी में समीक्षा

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स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए, भाजपा ने किस सीट पर हार की क्या वजह मानी…

जयपुर बीजेपी मुख्यालय में सीटवार हार के कारणों की समीक्षा की गई थी।

जयपुर बीजेपी मुख्यालय में सीटवार हार के कारणों की समीक्षा की गई थी।

रिपोर्ट में हर सीट के समीकरण और रिजल्ट के साथ सभी सियासी फैक्टर का जिक्र

रिपोर्ट में हर सीट के समीकरण और रिजल्ट के साथ सभी सियासी फैक्टर का जिक्र किया गया है। बाकायदा सीटवार हार के कारणों का ब्योरा और आगे सुधार को लेकर किए जा सकने वाले प्रयास को बिंदुवार बताया गया है। जयपुर में हुई 2 दिन की बैठकों का फीडबैक भी रिपोर्ट में शामिल है। बीजेपी हाईकमान अब दिल्ली में राजस्थान की 11 सीटों पर हार के कारणों की समीक्षा करेगा। इसके लिए जल्द बैठक बुलाने की तैयारी की जा रही है।

बाड़मेर : परंपरागत वोटर रविंद्र भाटी की तरफ गए, जातीय समीकरण बिगड़े
बाड़मेर सीट पर बीजेपी तीसरे नंबर पर रही। मंत्री केके विश्नोई सहित 5 बीजेपी विधायकों के इलाकों में बीजेपी की बुरी तरह हार हुई। बीजेपी की हार के पीछे सबसे बड़ा कारण पार्टी के परंपरागत वोट बैंक का निर्दलीय रविंद्र भाटी की तरफ चले जाना रहा है। इसके अलावा जातीय समीकरण बिगड़ने से बीजेपी को भारी नुकसान हुआ। बीजेपी उम्मीदवार को कई जगह भितरघात का भी सामना करना पड़ा।

दौसा और करौली-धौलपुर : आरक्षण का मुद्दा, पायलट फैक्टर भी कारण
पूर्वी राजस्थान की तीनों सीटों पर बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण एससी-एसटी आरक्षण खत्म करने के प्रचार से हुए नुकसान को माना जा रहा है। दौसा और करौली सीटों पर बीजेपी की टिकट वितरण के कारण विरोधी खेमे के नेता-कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गए। मंत्री किरोड़ीलाल मीणा भी बीजेपी के पक्ष में वोट ट्रांसफर नहीं करवा पाए। दौसा में 7 विधानसभा सीटों पर बीजेपी पीछे रही। 4 बीजेपी विधायकों के इलाकों में पार्टी हारी। सचिन पायलट फैक्टर के कारण दौसा में बीजेपी को नुकसान हुआ। करौली-धौलपुर की 8 में से 5 सीटों पर बीजेपी हारी। 2 बीजेपी विधायकों के इलाके में भी हार का सामना करना पड़ा।

झुंझुनूं : आपसी फूट और नेताओं की निष्क्रियता
झुंझुनूं में बीजेपी की हार के पीछे आपसी फूट बड़ा फैक्टर माना गया। बीजेपी के कई स्थानीय नेता निष्क्रिय रहे। बीजेपी विधायकों के इलाकों में बड़ी लीड नहीं मिली। कर्मचारियों और किसानों की नाराजगी से इस सीट पर बीजेपी को नुकसान हुआ। अग्निवीर योजना से युवाओं की नाराजगी और जातीय समीकरण भी हार का कारण रहे।

नागौर : बिगड़े जातीय समीकरण, भितरघात और परंपरागत वोटर्स की नाराजगी
नागौर सीट पर आपसी फूट और परंरागत वोटर्स की नाराजगी बीजेपी की हार का बड़ा कारण रहा। बीजेपी उम्मीदवार के साथ कई जगह भितरघात हुआ। इंडिया गठबंधन उम्मीदवार को जातीय नाराजगी को बीजेपी के खिलाफ भुनाने में सफलता मिल गई। बीजेपी का परंपरागत वोटर वोट करने नहीं गया। यह भी हार की बड़ी वजह रही।

बांसवाड़ा : बीएपी की भावनात्मक पकड़ का तोड़ नहीं निकाल पाए
बांसवाड़ा सीट पर बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण आदिवासी वोटर के स्थानीय भावनात्मक मुद्दे को समझ नहीं पाना रहा। बीजेपी नेतृत्व बीएपी के लोकल नेटवर्क और आदिवासी वोटर्स तक उनके जुड़ाव की काट नहीं खोज पाया। कांग्रेस नेता को बीजेपी में लेकर उम्मीदवार बनाने से फायदे की जगह नुकसान हुआ। भारतीय आदिवासी पार्टी के भील प्रदेश के मुद्दे ने भी बीजेपी का नुकसान किया। स्थानीय मुद्दे हावी रहने से बीजेपी के मुद्दे नहीं चले। 8 में से 7 विधानसभा सीटों पर बीजेपी पीछे रही। दो विधायकों के इलाकों में हार हुई।

श्रीगंगानगर : किसान आंदोलन का असर, जातीय समीकरण हार के कारण
श्रीगंगानगर सीट पर हार के पीछे स्थानीय जातीय समीकरण बिगड़ने के साथ किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी को भी कारण माना गया है। सीट पर पंजाब, हरियाणा की सियासत का असर भी आया, जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को हुआ। 8 में से 7 सीट पर बीजपी हारी। सादुलशहर विधायक के इलाके में पार्टी पीछे रही।

सीकर : जातीय समीकरण नहीं साध पाए, भितरघात से भी हारे
सीकर में हार का सबसे बड़ा कारण जातीय समीकरण नहीं साध पाने के साथ कई इलाकों में भितरघात को भी माना जा रहा है। धोद विधायक गोवर्धन वर्मा और खंडेला विधायक सुभाष मील के इलाकों में भी पार्टी उम्मीदवार की हार हुई। 8 में से 6 विधानसभा सीटों पर बीजेपी पीछे रही। स्थानीय स्तर के कई नेताओं के एक्टिव नहीं रहने को भी कारण माना गया है। किसान, एससी और अल्पसंख्यक वोटर्स की लामबंदी इस सीट पर बीजेपी की हार का कारण बनी।

चूरू : डैमेज कंट्रोल नहीं कर पाए
चूरू में पूरा चुनाव जातीय गोलबंदी के इर्द-गिर्द होने का सबसे बड़ा नुकसान हुआ। 8 में से 5 सीटों पर बीजेपी हारी। चूरू में हार का सबसे बड़ा कारण जातीय आधार पर गोलबंदी और जातीय नाराजगी के साथ एससी और माइनॉरिटी वोटर्स की गोलबंदी रही। बीजेपी के फीडबैक में राहुल कस्वां की टिकट काटने से जातीय गोलबंदी का बीजेपी को नुकसान होने का कारण बताया गया है। लोकल लेवल पर बीजेपी के कई नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। लोकसभा चुनावों से पहले स्थानीय स्तर के कई बीजेपी नेताओं ने भितरघात किया। यहां समय रहते डैमेज कंट्रोल नहीं हो पाना हार का बड़ा कारण माना गया।

भरतपुर : आरक्षण पर कांग्रेस के प्रचार से नुकसान
भरतपुर सीट पर एससी-एसटी वोटर्स पर आरक्षण खत्म करने के कांग्रेस के प्रचार का बड़ा असर देखने को मिला। बीजेपी ने हार के कारणों में इसे बड़ा फैक्टर माना है। जाट आरक्षण के मुद्दे के जोर पकड़ने से भी नुकसान हुआ। लोकसभा चुनाव से पहले जाट आरक्षण के मुद्दे ने बीजेपी के प्रति नाराजगी पैदा की और इस मुद्दे पर डैमेज कंट्रोल नहीं कर सके। 8 में से 6 विधानसभा सीटों पर बीजेपी पीछे रही। मंत्री जवाहर सिंह बेढम सहित 5 बीजेपी विधायकों के इलाकों में हार हुई।

टोंक-सवाईमाधोपुर : पायलट फैक्टर, आरक्षण और स्थानीय समीकरणों से हार

टोंक-सवाईमाधोपुर सीट पर बीजेपी की हार के पीछे सचिन पायलट फैक्टर बड़ा कारण रहा। कांग्रेस उम्मीदवार हरीश मीणा सचिन पायलट समर्थक थे। गुर्जर, मीणा, मुस्लिम वोटर्स की गोलबंदी बीजेपी की हार का बड़ा कारण रही। सुखवीर जौनपुरिया को लेकर नाराजगी भी कारण रही। 8 में से 6 सीटों पर बीजेपी हारी। मंत्री किरोड़ीलाल मीणा, खंडार विधायक जितेंद्र गोठवाल के इलाकों में बीजेपी की हार हुई। आरक्षण खत्म करने के प्रचार ने बीजेपी की हार में बड़ी भूमिका निभाई। स्थानीय नेताओं का निष्क्रिय होना और आपसी फूट ने भी कई जगह नुकसान किया।

जातीय नाराजगी, आरक्षण का मुद्दा बड़े फैक्टर
बीजेपी ने जातीय समीकरण बिगड़ने व कांग्रेस के एससी-एसटी आरक्षण खत्म करने को लेकर किए गए प्रचार को हार का बड़ा कारण बताया है। 11 सीटों पर कई लोकल नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं। सीटवार लोकसभा चुनावों में भितरघात करने वाले नेताओं और निष्क्रिय नेताओं का भी जिक्र है।

भितरघात करने वाले नेताओं पर दिल्ली के मंथन के बाद एक्शन पर फैसला
लोकसभा चुनावों में पार्टी के खिलाफ काम करने वालों और भितरघात करने वाले नेताओं पर आगे क्या एक्शन होगा, इस पर पार्टी ने अभी फैसला नहीं किया है। बीजेपी को हरवाने के लिए काम करने वाले नेताओं का ब्योरा तैयार किया गया है। बीजेपी हाईकमान के इशारे के बाद इस मामले में आगे का फैसला होगा।

11 लोकसभा क्षेत्रों की 49 विधानसभा में हारी बीजेपी, इनमें 27 बीजेपी विधायक
बीजेपी को गंगानगर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, बाड़मेर, टोंक-सवाईमाधोपुर, दौसा, भरतपुर, करौली-धौलपुर, बांसवाड़ा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।

11 लोकसभा क्षेत्रों की 88 में से 49 विधानसभा सीटों पर बीजेपी की हार हुई है। हार वाली 27 सीटों पर बीजेपी विधायक हैं।

27 विधायकों के इलाकों में लोकसभा हारी बीजेपी

टोंक—सवाईमाधोपुर

कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा : सवाईमाधोपुर

जितेंद्र गोठवाल : खंडार

गंगानगर

गुरवीर सिंह : सादुलशहर

सीकर

गोवर्धन वर्मा : धोद

सुभाष मील : खंडेला

चूरू

हरलाल सहारण : चूरू

भरतपुर

गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम: नगर

रमेश खींची : कठुमर

नौक्षम चौधरी : कामां

डॉ शैलेश सिंह : डीग कुम्हेर

बहादुर सिंह कोली : वैर

बाड़मेर

मंत्री केके विश्नोई : गुढ़ामालानी

प्रताप पुरी : पोकरण

छोटूसिंह भाटी : जैसलमेर

हमीर सिंह भायल: सिवाना

अरुण चौधरी : पचपदरा

आदुराम मेघवाल : चौहटन

दौसा

भाकचंद टाकड़ा : बांदीकुई

राजेंद्र मीणा : महवा

विक्रम बंशीवाल : सिकराय

रामबिलास : लालसोट

बांसवाड़ा

शंकरलाल डेचा : सागवाड़ा

कैलाश मीणा : गढ़ी

नागौर

मंजू मेघवाल : जायल

लक्ष्मण : मेड़ता

करौली-धौलपुर

दर्शन सिंह : करौली

हंसराज मीणा : सपोटरा

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