मेरी ऐसी पिटाई हुई थी कि घाव बन गया था.. जस्टिस चंद्रचूड़ ने नेपाल में सुनाई चौंकाने वाली दास्तां

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Juvenile Justice News: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को अपने बचपन की एक घटना याद करते हुए कहा कि उन्हें भी एक बार पीटा गया था. असल में नेपाल की राजधानी काठमांडू में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित ‘जुवेनाइल जस्टिस’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ पुरानी यादों में चले गए और खुलासा किया कि कैसे इस घटना ने उनके दिमाग पर गहरा प्रभाव डाला था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, इसका उनके पूरे जीवन भर उनके दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

उन्होंने कहा कि मैं स्कूल का वह दिन कभी नहीं भूलूंगा. जब स्कूल में मेरे हाथों पर बेंतें मारी गईं, तब मैंने कोई अपराध नहीं किया था. बस मैं अपना एक असाइनमेंट नहीं कर पाया था. उन्होंने आगे कहा कि शर्म के कारण मैं अपने माता-पिता को अपने हाथ नहीं दिखा सका, हाथ पर घाव ठीक हो गए, लेकिन इस घटना ने उसके दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी.

माता-पिता को नहीं बता सके..
उन्होंने कहा कि मुझे अभी भी याद है कि मैंने अपने शिक्षक से अनुरोध किया था कि वह हाथ पर ना मारें कहीं और मार दें लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि शर्म के मारे वह अपने माता-पिता को नहीं बता सके और अपनी घायल दाहिनी हथेली को दस दिनों तक छुपाना पड़ा था. सीजेआई ने कहा कि शारीरिक घाव ठीक हो गया लेकिन मन और आत्मा पर एक स्थायी छाप छोड़ गया. जब मैं अपना काम करता हूं तो यह अभी भी मेरे साथ है. बच्चों पर इस तरह के उपहास का प्रभाव बहुत गहरा पड़ता है.

बच्चों की कमजोरियों को पहचानना चाहिए..
जुवेनाइल जस्टिस पर बोलते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों को “कानूनी विवादों में उलझे बच्चों की कमजोरियों और जरूरतों को पहचानना चाहिए. उन्होंने कहा कि किशोरावस्था की बहुमुखी प्रकृति को समझना आवश्यक है और यह समाज के विभिन्न पहलुओं से कैसे संबंधित है. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी न्याय प्रणाली करुणा, पुनर्वास और समाज में उनके पुन: एकीकरण के अवसरों के साथ प्रतिक्रिया करे.

हालिया मामले का भी जिक्र..
सीजेआई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के सामने आए हालिया मामले का भी जिक्र किया, जिसमें एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की गई थी. शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी, लेकिन बाद में अपने आदेश को वापस ले लिया क्योंकि नाबालिग के माता-पिता ने उसकी सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की थी.

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