मिठाई जिसका नाम राजा ने राजा ने रखा था: बाड़मेर का 63 साल पुराना जायका, जालदार मेसू बाहर से पीली और अंदर से होती है रेड – Rajasthani Zayka Headlines Today News

19वीं सदी में बेसन, घी और चीनी को मिलाकर कर्नाटक के मैसूर शहर में ऐसी मिठाई बनी, जिसका नाम वहां के राजा ने शहर के नाम पर रख दिया था। ये मिठाई थी मैसूर पाक। मैसूर पाक देश के जिस भी कोने में पहुंची वहां के हलवाईयों ने अलग-अलग एक्सपेरिमेंट किए।
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उस जमाने में मारवाड़ के हलवाइयों की देशभर में चर्चा होती थी। जब मैसूर पाक की रेसिपी जोधपुर पहुंची तो एक हलवाई ने उसे अपने अंदाज में बनाया, तो स्वाद लोगों की जुबां पर चढ़ गया। आज यही मिठाई बाड़मेर का मशहूर ब्रांड मेसू पाक बन गई है।
बाड़मेर के जेएमबी का मेसू पाक खाने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको भी हम बाड़मेर लेकर चलते हैं। यहां की एक और खास मिठाई है, उसकी भी चर्चा करेंगे।

मेसू पाक बाहर से एकदम पीला और जालीदार दिखता है लेकिन अंदर से यह रेड होता है।
63 साल पहले आए थे जोधपुर से बाड़मेर
जेएमबी यानी जोधपुर मिष्ठान भंडार के ओनर कमल सिंघल ने बताया कि मेसू बाहर से पीला और अंदर रेड और जालीदार मिठाई होती है। यह एक तरह से मैसूर पाक का दूसरा रूप है। यह खासियत मेसू को बाड़मेर की पहचान बनाती है। मेसू 20-30 दिन खराब नहीं होते है। यहीं वजह है कि यहां के मेसू देशभर के लोग खरीदने आते हैं।
कमल सिंघल ने बताया कि मेरे पिताजी मोतीलाल सिंघल जोधपुर के त्रिपोलिया बाजार कंदोई मार्केट में मिठाई की दुकान चलाते थे। उस दौर में मिठाई की बहुत ही कम वैरायटी मिलती थी। ट्रेडिशनल लड्डू, गुलाब जामुन वगैरह का ही ज्यादा चलन होता था। लेकिन पिताजी हमेशा कई शहरों में जाकर वहां की मिठाइयों को परखते थे। फिर उन्हें घर लौटकर ट्राई करते थे। ऐसी ही उन्होंने मैसूर पाक बनाने की विधि सीखी।
वर्ष 1961 में हम बाड़मेर शिफ्ट हो गए। यहां स्टेशन रोड पर दुकान किराए पर लेकर व्यापार शुरू किया। उस समय बाड़मेर में बहुत ही गिनी चुनी मिठाइयां बिकती थी। पिता ने यहां सबसे पहले इमरती बनाने की शुरुआत की। उस समय मशीनें नहीं होती थी। दाल की पिसाई घटौलिया से करते थे। फिर उसे सीला से उसको बांटते थे। एक दिन उन्हें अचानक याद आया कि उन्हें मैसूर पाक की रिसेपी भी आती है। फिर क्या था यहीं से मेसू पाक बनने का सिलसिला शुरू हुआ।

मेसू पाक तीन आइटम बेसन, घी व चीनी से मिलकर बनता है। इसे काटकर चिक्की बनाई जाती है।
मैसूर की मिठाई है मेसू पाक
कमल सिंघल ने बताया कि मेसू पाक जिस प्रकार नाम है, उसी तरह यह मैसूर की मिठाई है। बाड़मेर पहली बार मेरे पिताजी मोतीलाल ने इसकी शुरूआत की थी। मैसूर में जो मैसूर पाक बनता है, वो बहुत सॉफ्ट होता है, जो वहां के वातावरण के अनुसार होता है।
लेकिन बाड़मेर में जैसा मौसम रहता है, उसके अनुसार पिताजी ने कई एक्सपेरिमेंट किए। जो पाक बना, वो काफी कुरकुरा था। इसका स्वाद भी मैसूर पाक से अलग था। दुकान पर आने वाले ग्राहकों ने जब इसे चखा तो स्वाद जुबां पर चढ़ गया। धीरे-धीरे यह पॉपुलर हो गया। दादाजी ने इस मिठाई का नाम मेसू पाक रख दिया।

कमल सिंघल बताते हैं कि मैसूर में बनने वाला पाक काफी सॉफ्ट होता है, लेकिन यहां के मेसू पाक में कुरकुरापन रहता है।
देश भर में पहुंचते हैं यहां के मेसू, 20 दिन खराब नहीं होती
कमल बताते हैं कि मेसू बाड़मेर की पहचान इसलिए बनी क्योंकि यहां जैसा मेसू कहीं और नहीं बनता है। मेसू में जो कुरकुरा, लाल और जाली होती है, यही इसकी खासीयत है। मेसू अंदर से लाल और बाहर से पीले कलर का होना चाहिए।
कमल सिंघल का कहना है कि यहां का मेसू विदेश में तो नहीं जाता है। लेकिन देश भर में अलग-अलग कोने में लोग लेकर जाते हैं। यहां रहने वाले लोग अपने रिश्तेदारों को भेजते हैं। ये मिठाई 20 दिन तक खराब नहीं होती।
पहले से मेसू की डिमांड कम हुई है। वजह मिठाइयां ज्यादा आ गई हैं। देशी मिठाइयों की ओर लोग का झुकाव कम हुआ है। ज्यादातर लोगों का ड्राई फ्रूट स्वीट्स की ओर ज्यादा झुकाव हो रहा है। देसी मिठाइयों में घेवर और अन्य आइटम आ गए है।

यहां की इमरती भी है खास
कमल सिंघल बताते हैं कि मेसू पाक की तरह यहां इमरती भी पूरे बाड़मेर में काफी प्रसिद्ध है। इमरती उड़द दाल से बनती है। जो तवी के अंदर घी डाला जाता है। कपड़े में उड़द दाल ली जाती है। उसमें हल्का सा मेदा मिलाया जाता है। उसको अपनी हाथ की कला से गर्म घी से उसके ऊपर हाथ रखकर बनाया जाता है। गर्म घी के ऊपर हाथ को फैलाकर उसको अपनी कला दिखाते हुए उसको गोल-गोल घुमाना बड़ी मेहनता काम होता है। जो हर कोई नहीं कर सकता है।

इमरती 7 दिन तक खराब नहीं होती
सिंघल का कहना है कि इमरती 7 दिन तक खराब नहीं होती है। गर्म-गर्म इमरती खाने में बहुत आनंद आता है। लेकिन ठंडी का स्वाद बहुत ही गजब होता है। उड़द दाल से बना कोई भी आइटम शरीर के लिए फायदेमंद होता है। खासतौर से सर्दी में बहुत ज्यादा फायदेंमंद रहता है।
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स्टमर बोले- रेट मायने नहीं रखता है टेस्ट मायने रखता
पूना के रहने वाले कस्टमर सत्यनारायण कपूरिया का कहना है कि हम बाड़मेर में केवल मेसू पाक लेने के लिए आते है। एक साल तीन-चार बार आना होता ही है। स्पेशल इसी मिठाई के लिए। पसंद की वजह यही है कि ऐसी क्वालिटी और कहीं पर नहीं मिलती। यहां से खरीदा मेसू पाक 20 दिन तक खराब नहीं होता है। टेस्ट में भी कोई फर्क नहीं आता। भाव कौन पूछता है बस पसंद आनी चाहिए। मेसू हमारी पहली पसंद है।

कमल सिंघल ने बताया कि उनके यहां की 15 तरह की नमकीन भी काफी पॉपुलर है।
तीसरी पीढ़ी लगी है इस काम
कमल सिंघल (57) बताते है कि मेरी पिता जी स्व. मोतीलाल जी इसके बाद मैं और अब मेरा छोटा बेटा रिषभ (27) इस काम को संभाल रहा है। हालांकि रिषभ ने बीटेक कर रखी है। लेकिन उसका इस व्यापार से जुड़ाव व इंटरेस्ट रहा है। दुकान में देशी मिठाईयों के अलावा करीब 15 तरह की नमकीन भी बहुत लाजवाब बनती है।
पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर

ये है अजमेर की प्रसिद्ध मारवाड़ी फ्रूट कुल्फी। यह मैंगो-संतरा-अमरूद जैसे नेचुरल फ्रूट्स में ही तैयार की जाती है। अजमेर के ग्लिट्ज़ सिनेमा के नजदीक मारवाड़ी पगड़ी पहने एक शख्स यह स्पेशल कुल्फी बेचते हैं। हिंदी में मांग लीजिए या इंग्लिश में, मेड़ता (नागौर) निवासी राहुल बोराना मारवाड़ी में ही जवाब देते हुए कुल्फी परोसते हैं।
राहुल बताते हैं कि मारवाड़ी भाषा और सभ्यता को बढ़ावा देने के लिए वे मारवाड़ी अंदाज में लोगों का स्वागत करते हैं। राहुल फ्रूट बेस नेचुरल आइसक्रीम बेचते हैं, जो शहर में कहीं और नहीं मिलती। यानी असली मैंगो, एप्पल, गुआवा और ऑरेंज के अंदर ही आइसक्रीम को तैयार किया जाता है।