कई सालों बाद शहर में नजर आए गागरोन तोते – Jodhpur Headlines Today News

बाहरी इलाके में बढ़ते शहरीकरण के कारण आसपास की जैव विविधता को बहुत नुकसान हुआ है। शहरीकरण की प्रक्रिया में पुराने पेड़ों को काटा गया जिससे इन पेड़ों पर रहने वाले पंछियों को शहर छोड़ना पड़ा। इनमें मनुष्यों जैसी बोली में बात करने वाले गागरोन तोेते भी थ

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पक्षी व्यवहार विशेषज्ञ शरद पुरोहित ने बताया कि फिलहाल ये सिद्धनाथ, काजरी, मंडोर और उम्मेद उद्यान में नजर आए हैं। पुरोहित ने बताया कि इन्हें अगर ऐसी ही सुरक्षा मिलती रही तो शहर के पक्षियों की सूची में गागरोन तोते का नाम भी जुड़ जाएगा। उन्होंने बताया कि ये 20-25 साल आराम से जी लेते हैं।

पुरोहित ने बताया कि पिछले साल ये नजर आए और तब से वे इन तोतों पर नजर रख रहे हैं। इस बार इन्होंने मंडोर, काजरी, सिद्धनाथ, चौपासनी आदि जगहों पर भी इन्होंने आश्रय पाया है। उनका कहना है कि इनका अभी इस इलाके में नजर आना एक आश्चर्य की बात है। अभी अरावली में बरसात नहीं होने तक ये प्रवास करेंगे क्योंकि शहर में दाना-पानी और इनके खाने योग्य फल मौजूद हैं। दो सप्ताह बाद ये अपने बच्चों को लेकर निकल जाएंगे।

पुरोहित ने बताया कि पिछले साल ये नजर आए और तब से वे इन तोतों पर नजर रख रहे हैं। इस बार इन्होंने मंडोर, काजरी, सिद्धनाथ, चौपासनी आदि जगहों पर भी इन्होंने आश्रय पाया है। उनका कहना है कि इनका अभी इस इलाके में नजर आना एक आश्चर्य की बात है। अभी अरावली में बरसात नहीं होने तक ये प्रवास करेंगे क्योंकि शहर में दाना-पानी और इनके खाने योग्य फल मौजूद हैं। दो सप्ताह बाद ये अपने बच्चों को लेकर निकल जाएंगे।

पुरोहित ने बताया कि विचारणीय बात यह है कि आजादी के बाद शास्त्री नगर और सरदारपुरा जैसे नए इलाके बने तो उस समय इन क्षेत्रों में काफी पेड़ लगाए गए थे। उन्हीं पेड़ों पर किले की शान रहे पहाड़ी तोते गागरोन काफी नजर आते थे। इन तोतों की मनुष्यों के समान बोली ने इनके अस्तित्व को संकट में डाल दिया। अक्सर इनके ब्रीडिंग सीजन में 10-15 दिनों के बच्चों को पक्षी तस्कर उठा लेते हैं और 2500-3000 रुपए के एक तोते के हिसाब से चोरी-छिपे बेच देते हैं। इस वजह से पिछले कुछ साल से ये शहर से गायब ही हो गए। हालांकि वन्यप्राणी कानून के अनुसार इन्हें बंदी रखने पर जेल और दंड व्यवस्था भी है लेकिन दिल्ली, पंजाब, गुजरात, इंदौर, कोलकाता से तस्कर इन्हें ले आते हैं और शौकीन लोग इनके जीवन व इनकी प्रजाति को संकट में डाल रहे हैं।

बड़े व घने पेड़ों में तोते तलाशते हैं आश्रय

पुरोहित ने बताया कि इन तोतों को आश्रय के लिए घने और विराट पेड़ चाहिए। ऐसे पेड़ मारवाड़ के विभिन्न इलाकों में 30 से 50 साल पहले लगाए गए थे। राजकाल के पेड़ इनके लिए सुरक्षा कवच बने हैं जहां विराट पेड़ों में चुपके से ये आश्रय बना रहे हैं।

पुरोहित ने बताया कि मारवाड़ में इनका शिकार या इन्हें कैद करने वालों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। शहर की प्रकृति के प्रति संवेदनशील संस्थाओं की नजर और कानून सख्त होने के कारण इनके लिए पश्चिमी राजस्थान ही भारत का सबसे सुरक्षित स्थान है। भोजन, पानी और सुरक्षा के कारण ही गागरोन तोते पहली बार इस इलाके में प्रजनन कर सके और अपने बच्चों के साथ नजर आए हैं।

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